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श॒तं वा॒ यस्य॒ दश॑ सा॒कमाद्य॒ एक॑स्य श्रु॒ष्टौ यद्ध॑ चो॒दमावि॑थ। अ॒र॒ज्जौ दस्यू॒न्त्समु॑नब्द॒भीत॑ये सुप्रा॒व्यो॑ अभवः॒ सास्यु॒क्थ्यः॑॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

śataṁ vā yasya daśa sākam ādya ekasya śruṣṭau yad dha codam āvitha | arajjau dasyūn sam unab dabhītaye suprāvyo abhavaḥ sāsy ukthyaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

श॒तम्। वा॒। यस्य॑। दश॑। सा॒कम्। आ। अद्यः॑। एक॑स्य। श्रु॒ष्टौ। यत्। ह॒। चो॒दम्। आवि॑थ। अ॒र॒ज्जौ। दस्यू॑न्। सम्। उ॒न॒प्। द॒भीत॑ये। सु॒प्र॒ऽअ॒व्यः॑। अ॒भ॒वः॒। सः। अ॒सि॒। उ॒क्थ्यः॑॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:13» मन्त्र:9 | अष्टक:2» अध्याय:6» वर्ग:11» मन्त्र:4 | मण्डल:2» अनुवाक:2» मन्त्र:9


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वान् ! (यस्य) जिन आपके (दशशतं वा) दशसौ एक सहस्र योद्धा (साकम्) साथ में वर्त्तमान हैं वा (यत्,ह) जो ही (अद्यः) भोजन करने योग्य आप (एकस्य) जो सहायरहित है उसके (श्रुष्टौ) पाने योग्य सुख के निमित्त (चोदम्) प्रेरणा को (आविथ) चाहते हो (अरज्जौ) विना किसी रचना विशेष स्थान में (दभीतये) मारने के लिये (दस्यून्) दुष्टाचारी मनुष्यों को (समुनप्) अच्छे प्रकार पूरण करते हो और (सुप्राव्यः) सुन्दरता से प्रकाश के साथ रखने योग्य (अभवः) होते हो इस कारण (सः) वह आप (उक्थ्यः) अनेक के बीच प्रशंसनीय (असि) हो ॥९॥
भावार्थभाषाः - जिस किसी से एक सहस्र वीर योद्धा सत्कार करके रक्खे जाते हैं, वह चोरादिकों को निवृत्त कर सकता है ॥९॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे विद्वन् यस्य ते दश शतं वा योद्धारस्साकं वर्त्तन्ते यद्वाद्य एकस्य श्रुष्टौ चोदमाविथ। अरज्जौ दभीतये हिंसनाय दस्यून् समुनप्सुप्राव्यस्त्वमभवस्तस्मात् स त्वमुक्थ्योऽसि ॥९॥

पदार्थान्वयभाषाः - (शतम्) (वा) (यस्य) (दश) (साकम्) (आ) (अद्यः) अत्तुं योग्यः (एकस्य) असहायस्य (श्रुष्टौ) प्राप्तव्ये सुखे (यत्) यः (ह) किल (चोदम्) प्रेरणाम् (आविथ) अवति (अरज्जौ) असृष्टौ (दस्यून्) दुष्टाचारान् मनुष्यान् (सम्) सम्यक् (उनप्) उम्भति पूरयति (दभीतये) मारणाय (सुप्राव्यः) सुष्ठुप्रकाशेन रक्षितुं योग्यः (अभवः) भवसि (सः) (असि) (उक्थ्यः) ॥९॥
भावार्थभाषाः - येन केनचिद्दश शतं वीराः सत्कृत्य रक्ष्यन्ते स चोरादीन्निवारयितुं शक्नोति ॥९॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - ज्याच्याकडून एक सहस्र वीर योद्ध्यांचा सत्कार केला जातो तो दुष्टाचरण करणाऱ्यांना नष्ट करू शकतो. ॥ ९ ॥